Thursday, December 22, 2011

... ये खुदगर्जों का शहर है !

एक दूजे की दुम को, खुद ही ये सहला रहे हैं
कोई काट के न फेंक दे इसलिए घवरा रहे हैं !
...
'खुदा' जाने, ये कौन-सी बिरादरी के लोग हैं
जो एक दूसरे को गुरु-गुरु कह रहे हैं !
...
ये बहुत शातिर लोग जान पड़ रहे हैं 'उदय'
बस, हाँ, ना, ना, हाँ, कर रहे हैं !
...
रूठ जाओ या मान जाओ, किसे फर्क पड़ता है
ये मत भूलो, ये खुदगर्जों का शहर है !
...
मैं और तुम ... कब तक ?
कब होंगे ? ... हम !!