Tuesday, November 1, 2011

क्या खूब जिंदगी है !!

सुबह से शाम तक
हम इस गुन्ताड में रहते हैं
कि -
कहाँ से कितने रुपये बटोरे जाएं
और, कितनों को चूना लगाया जाए
क्या खूब जिंदगी है !

सुबह से शाम तक
हम इस जुगाड़ में रहते हैं
कि -
काश ! आज एकाद आइटम पट जाए
और, खूब मौज-मजे होते रहें
क्या खूब जिंदगी है !

सुबह से शाम तक
हम इन्हीं ख्यालों में रहते हैं
कि -
कम से कम, हम आज निपट न जाएं
भले अड़ोसी-पड़ोसी निपट जाएं
क्या खूब जिंदगी है !

सुबह से शाम तक
हम इस प्रयास में रहते हैं
कि -
पीने-खाने का जुगाड़ हो जाए
और, मुफ्त में ही इंजॉय चलता रहे
क्या खूब जिंदगी है !

सुबह से शाम तक
हमारा मकसद यही रहता है
कि -
बॉस के सांथ अपनी सेटिंग बनी रहे
भले लोगों
का छत्तीस का आंकड़ा हो जाए
क्या खूब जिंदगी है !

सुबह से शाम तक
हम इस फिराक में रहते हैं
कि -
हमारी आजादी में दखल न पड़े
भले बूढ़े माता-पिता तड़फते-बिलखते रहें
क्या खूब जिंदगी है !

सुबह से शाम तक
हम इस संशय में रहते हैं
कि -
कोई हमारी टांग पकड़ के न खींच दे
भले ही हम लोगों की खींचते रहें
क्या खूब जिंदगी है !

सुबह से शाम तक
हर पल, हर घड़ी, हर लम्हें में
हम इसी चाहत में रहते हैं
कि -
हम किसी न किसी की बजाते रहें, बैंड
पर, कोई हमारी न बजा पाए
क्या खूब जिंदगी है !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत दिनों बाद गुन्ताड शब्द सुना है।