Monday, October 31, 2011

उधेड़बुन ...

क्यूँ मियाँ, किस उधेड़बुन में हो
क्या कर रहे हो
कुछ खबर है भी या नहीं !

कहीं जिंदगी को -
सांप-सीढ़ी का खेल तो नहीं समझ रहे हो
और
बेधड़क, कुछ का कुछ करे जा रहे हो !

सुबह सोचते कुछ हो
और शाम होते होते, कुछ और कर ले रहे हो
क्या माजरा है ?
क्या समझाओगे हमें ?

क्या यूँ ही, जिंदगी की फटेहाली चलते रहेगी
या फिर
कुछ, कर गुजरने का भी इरादा है !

बोलो, बताओ, कुछ तो मुंह खोलो मियाँ
कब तक, यूँ ही गुमसुम से बैठे रहोगे
और, मन ही मन, ख्याली पुलाव पकाते रहोगे !

धन्य हो प्रभु, आप सचमुच धन्य हो
आपकी लीला अपरम्पार है
खुद तो डूबोगे सनम -
संग संग हमें भी बहा ले जाओगे !

अब उठ जाओ, और कर लो प्रण
कि -
आज से, अभी से, करोगे वही -
जो सुबह सुबह घर से सोच के निकलोगे
वरना, जय राम जी की !!

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जो करना हो वही सुबह सोचो।

सूर्यकान्त गुप्ता said...

bhaaii jay ramjiki!! jaun guno ola karo jaroor socho jhan.....

संगीता पुरी said...

आज से, अभी से, करोगे वही -
जो सुबह सुबह घर से सोच के निकलोगे
वरना, जय राम जी की !!