Friday, September 16, 2011

... किसी न किसी दिन, मैं भी 'खुदा' हो जाऊंगा !

सच ! तुम कहते रहे, हम सुनते रहे, यकीन करते रहे
ऐसा क्या कहा हमने, जो सुनते ही, तुम भौंचक हुए हो !
...
हरेक सवाल में जवाब नजर रहे हैं 'उदय'
कब तक सुना जाए, कब तक चुप रहा जाए !
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हम ! शायद, कुछ भी तो नहीं हैं
सिर्फ एक मुसाफिर के सिवा !!
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क्या लिखूं, क्या नहीं, चहूँ ओर शोर है
झूठ की मंशा है जीत की, यही जोर है !
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सच ! सारे शहर में चर्चा है कि वो बड़े लेखक हुए हैं
जब पूंछता हूँ, क्या लिखा, सभी खामोश रहते हैं !!
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चलो जाने भी दो, अब ये बातें पुरानी हुईं
हमें भी आ गया है अब, बातें बनाना !
...
मेरा सच बोलना गुनाह हो जाएगा
प्यार करता हूँ उसे मालुम हो जाएगा !
...
नर, नारी, हिन्दू, मुसलमां
सदा होता रहा है, ईमान का सौदा !
...
हम जब तक थे, तो सिर्फ तुम्हारे थे
वक्त जो बदला, तो हम हमारे रहे !
...
गर लोग यूं ही पत्थर समझ, मेरे पास से गुजरते रहे 'उदय'
तो तय है किसी किसी दिन, मैं भी 'खुदा' हो जाऊंगा !

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब।

सागर said...

bhaut hi sundar....

संजय भास्‍कर said...

वाह ... क्या कमाल का शेर है ... लाजवाब गज़ल है पूरी ...