Saturday, February 12, 2011

उफ़ ! भाई लोग, नौ दो ग्यारह हो गए !!

काश, इतनी रौशनी हमें भी दे देता 'भगवान'
कुछ पल को सही, सारे अंधेरे दूर कर देते !
...
चलो आज उसकी सजाएं, आजमा लें हम
सच ! ये हमारे हौसले हैं, जो कम नहीं होंगे !
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आज
जब मैंने तुम्हें देखा, लाल साड़ी में, अद्भुत
सच ! ऐसा लगा तुम मेरे आँगन का पलाश हो !
...
तुम खामोश थीं, फिर भी ऐसा लगा
सच ! जैसे तुमने मुझसे कुछ कहा है !
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आज बहुत, जमीर बेचने को उतारू हैं
दौलत शौहरत के नशे में चूर हुए हैं !
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कोई चापलूस कहता है, बुरा नहीं लगता
सच ! अब तो आदत सी हो गई है !
...
रात-दिन पैसा कमाने, छिपाने की धुन ने
सच ! बहुतों को दिल का मरीज बना दिया !
...
पैसा कमाने के चक्कर में
उफ़ ! बन गए घनचक्कर !
...
ये स्टाइल है अपुन का, कहो - है ख़ास
तब ही तो लोग, देखकर मायूस रहते हैं !
...
क्या ज़माना है, हमारे आने की खबर सुनकर
उफ़ ! भाई लोग, नौ दो ग्यारह हो गए !!

4 comments:

Anonymous said...

उदय भाई आपकी यह ब्लाँग पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी ,आभार ।

सुप्रसिद्ध उपन्यासकार और ब्लाँगर नन्दलाल भारती जी का साक्षात्कार पढने के लिए यहाँ क्लिक करेँ>>

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर ओर सत्य से भरपूर आप की यह गजल धन्यवाद

Smart Indian said...

ज़मानाइच खराब है।

प्रवीण पाण्डेय said...

अभागे होंगे वे जो कड़वा सच सुनने में डरेंगे।