सच ! क्या खुशनसीबी है, कोई तो अपना है 'उदय'
वरना आज के दौर में, वफ़ा के आड़ में छिपी बेवफाई है !
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कौन है जिसको अब हम, अपना कहें इस भीड़ में
उफ़ ! अब सोचना कैसा, जब पत्थर उठाया हांथ में !
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सच ! चढ़ा दो तुम हमें चाहे सूली पर, हम उफ़ न बोलेंगे
न करो ईमान का सौदा, नहीं तो हम तुम्हारी जान ले लेंगे !
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अदब से करते हो चर्चा, नया अंदाज है कोई
तुम्हारी लेखनी से, नए मुकाम मिलते हैं !
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बड़ा अफसोस, उन्होंने खुद को हम से, किनारे किया है 'उदय'
जब घिरते हैं रकीबों से, ले मेरा नाम, बचके निकल जाते हैं !
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यार मजा नहीं आ रहा, नींद नहीं आती, कुछ नया किया जाए
जनता खामोश है, क्यों न नदियों और पहाड़ों को बेचा जाए !
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अंधेरे मुझे डरा नहीं सकते
अब मैं अभ्यस्त हो चला हूँ !
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शब्द मैं वो ही लिखूंगा, जो मुझे अच्छे लगेंगे
अच्छे लगें तो सहेज लो, नहीं तो दुआ-सलाम !
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कोई आँखों से दिल में उतर आया है 'उदय'
अब क्या करें, उसकी जरुरत इन बांहों को है !
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नारी ! गूंगी नहीं है, अदब करती है 'उदय'
सच ! मान दो, मत छेड़ो, अदब से रहने दो !
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कोई गम नहीं, गुमनाम हुए
सच ! ईमान सलामत है !
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सच ! अजब रश्म-ओ-रिवाज हो चले हैं, हुकूमत के 'उदय'
फकीरों, यायावरों, खानाबदोशों, तक का जीना दुश्वार हुआ है !
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न जाने कोई, क्यों मुझे बेवजह चाहता रहा
रोज मिलता रहा, पर खामोश रहा !
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बेईमान, धोखेबाज, गद्दार, लोकतंत्र की शान हुए हैं 'उदय'
ये लोकतंत्र के शेर हैं, इन्हें कैसे भी हो पिंजरे में रखा जाए !
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सच ! नदी सा किल-किल बहता जीवन
चलता, बढ़ता, बहता जाए !
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हमने वतन की डोर सौंप दी, दरिंदों के हांथों में 'उदय'
अब रौंध रहें हैं वो हंस हंस के, वतन की आबरू को !
9 comments:
यही क्या कम है कि ईमान सलामत रख पाये हैं।
'हुआ नज़रों का नशा तो होश आया,
बहकते नहीं कदम अब पीने से ,
बहुत खूब !
बहुत खूब।
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हंसी का विज्ञान।
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सच ! क्या खुशनसीबी है, कोई तो अपना है 'उदय'
वरना आज के दौर में, वफ़ा के आड़ में छिपी बेवफाई है !
Kya gazab likha hai!
बेईमान, धोखेबाज, गद्दार, लोकतंत्र की शान हुए हैं 'उदय'
ये लोकतंत्र के शेर हैं, इन्हें कैसे भी हो पिंजरे में रखा जाए !
आपका कहना बाजिव है ..पर क्या कहें इस लोकतंत्र का ...
अंतिम शेर बहुत अच्छा लगा.. सच्चाई यही है..
सारे शे’र विचारोत्तेजक।
हर शेर लाजवाब और बेमिसाल ..
हमने वतन की डोर सौंप दी, दरिंदों के हांथों में 'उदय'
अब रौंध रहें हैं वो हंस हंस के, वतन की आबरू को !
सहमत हे जी आप की इस रचना से, धन्यवाद
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