Thursday, January 27, 2011

... ताउम्र जलता ... चिराग बुझ गया, बस्ती में अंधेरा है !!

सच ! भीड़ बड़ी, फिर बाजार छटने लगा
उफ़ ! कौड़ी के भाव, बिके, बैठे रहे !
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कतरा कतरा खून, सींचते रहे, जमीं पर
वक्त ने चाहा अगर, किसान हम हो जायेंगे !
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सच ! कातिल हूँ, क़त्ल करता रहा हूँ, मैं भाषा का
जब, जैसी, मर्जी हुई, तोड़-मरोड़, उधेड़बुन करता रहा !
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ब्लॉग पोस्टें चढ़ रही हैं, टिप्पणियों के अर्द्धशतक हुए हैं
सच ! कोई मानें या मानें, हम तो टाप ब्लॉगर हैं !
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ईमानदार ! अब क्या कहें, शायद यही दस्तूर हुए हैं
कभी कोल्हू के बैल, तो कभी सर्कस के शेर हुए हैं !
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ताउम्र जलता रहा, कोई चिराग की तरह
चिराग बुझ गया, बस्ती में अंधेरा है !
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झूठ, फरेब, मौकापरस्ती, इश्क के हथियार हुए हैं 'उदय'
देख के, संभल के, किसी को चाहो, तो टटोल के चाहो !
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सच ! अब चंदन, गुलाब, हतप्रभ हुए हैं 'उदय'
समझ में नहीं आता, कोई उनसे चाहता क्या है !
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कल, आज, कल, एक चक्र है 'उदय'
सच ! कुछ भी हो, तो भी बहुत कुछ है !
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सच ! मैं ढूँढता फिरा, इधर उधर
खुशी, नाराज है, छिप गई है कहीं !
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जिन्दगी गुजर गई, दर्द समेटते समेटते
सच ! शायद अब, इन आँखों में बसेरा है !
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बुढ्डे ने एक नाबालिक से कर लिया था निकाह
सच ! बहुत खुश था, पर अब दुखी रहता है !
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मन बेचैन हुआ मोहन का, कुछ सूझता नहीं
मंहगाई बढ़ रही है, कोई, उसे क्यों पीटता नहीं !
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क्या करेंगे सीखकर, खेल के गुर 'उदय'
सच ! सब जानते हैं, मैच फिक्स होना है !
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भाई बाँटते रहे जमीं और मकां, अपने अपने हिस्से में 'उदय'
मैं देखता रहा, मैंने पिता की तरह अदब करना सीखा है !
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तिनके हैं तो क्या हुआ, बहते रहें 'उदय'
शायद किसी डूबते का सहारा बन जाएँ !
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यह मिलन महज शिविर नहीं है 'उदय', जनयुद्ध है
मिटाना है, नेस्तनाबुत करना है भ्रष्टाचारियों को !
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ये माना आजादी गुम हुई है 'उदय'
उफ़ ! हुक्मरान आजाद हैं !

12 comments:

Arun sathi said...

क्रांतिकारी

नंगा सच

बहुत खूब उदय बाबू

संजय भास्‍कर said...

मिटाना है, नेस्तनाबुत करना है भ्रष्टाचारियों को !
....ek kadva sach hai

संजय भास्‍कर said...

तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

Deepak Saini said...

वाह क्या कटाक्ष किया है
शुभकामनाये

kshama said...

कतरा कतरा खून, सींचते रहे, जमीं पर
वक्त ने चाहा अगर, किसान हम हो जायेंगे !
Kya gazab likha hai!

vandana gupta said...

करारा व्यंग्य।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

bahut achchha.
dhardar samyik vyang.

शिवा said...

बहुत खूब .

Kailash Sharma said...

लाज़वाब..

प्रवीण पाण्डेय said...

इस अँधेरे में भी कोई लौ रह रह टिमटिमाती है।

समयचक्र said...

वाह भाई उदय जी ... बढ़िया रोचक प्रस्तुति...

Bharat Bhushan said...

ईमानदार ! अब क्या कहें, शायद यही दस्तूर हुए हैं
कभी कोल्हू के बैल, तो कभी सर्कस के शेर हुए हैं!
कटाक्ष की निरंतरता एक बिंब देने लगती है. बहुत खूब.