सच ! भीड़ बड़ी, फिर बाजार छटने लगा
उफ़ ! कौड़ी के भाव, न बिके, बैठे रहे !
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कतरा कतरा खून, सींचते रहे, जमीं पर
वक्त ने चाहा अगर, किसान हम हो जायेंगे !
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सच ! कातिल हूँ, क़त्ल करता रहा हूँ, मैं भाषा का
जब, जैसी, मर्जी हुई, तोड़-मरोड़, उधेड़बुन करता रहा !
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ब्लॉग पोस्टें चढ़ रही हैं, टिप्पणियों के अर्द्धशतक हुए हैं
सच ! कोई मानें या न मानें, हम तो टाप ब्लॉगर हैं !
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ईमानदार ! अब क्या कहें, शायद यही दस्तूर हुए हैं
कभी कोल्हू के बैल, तो कभी सर्कस के शेर हुए हैं !
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ताउम्र जलता रहा, कोई चिराग की तरह
चिराग बुझ गया, बस्ती में अंधेरा है !
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झूठ, फरेब, मौकापरस्ती, इश्क के हथियार हुए हैं 'उदय'
देख के, संभल के, किसी को चाहो, तो टटोल के चाहो !
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सच ! अब चंदन, गुलाब, हतप्रभ हुए हैं 'उदय'
समझ में नहीं आता, कोई उनसे चाहता क्या है !
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कल, आज, कल, एक चक्र है 'उदय'
सच ! कुछ न भी हो, तो भी बहुत कुछ है !
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सच ! मैं ढूँढता फिरा, इधर उधर
खुशी, नाराज है, छिप गई है कहीं !
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जिन्दगी गुजर गई, दर्द समेटते समेटते
सच ! शायद अब, इन आँखों में बसेरा है !
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बुढ्डे ने एक नाबालिक से कर लिया था निकाह
सच ! बहुत खुश था, पर अब दुखी रहता है !
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मन बेचैन हुआ मोहन का, कुछ सूझता नहीं
मंहगाई बढ़ रही है, कोई, उसे क्यों पीटता नहीं !
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क्या करेंगे सीखकर, खेल के गुर 'उदय'
सच ! सब जानते हैं, मैच फिक्स होना है !
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भाई बाँटते रहे जमीं और मकां, अपने अपने हिस्से में 'उदय'
मैं देखता रहा, मैंने पिता की तरह अदब करना सीखा है !
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तिनके हैं तो क्या हुआ, बहते रहें 'उदय'
शायद किसी डूबते का सहारा बन जाएँ !
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यह मिलन महज शिविर नहीं है 'उदय', जनयुद्ध है
मिटाना है, नेस्तनाबुत करना है भ्रष्टाचारियों को !
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ये माना आजादी गुम हुई है 'उदय'
उफ़ ! हुक्मरान आजाद हैं !
12 comments:
क्रांतिकारी
नंगा सच
बहुत खूब उदय बाबू
मिटाना है, नेस्तनाबुत करना है भ्रष्टाचारियों को !
....ek kadva sach hai
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
वाह क्या कटाक्ष किया है
शुभकामनाये
कतरा कतरा खून, सींचते रहे, जमीं पर
वक्त ने चाहा अगर, किसान हम हो जायेंगे !
Kya gazab likha hai!
करारा व्यंग्य।
bahut achchha.
dhardar samyik vyang.
बहुत खूब .
लाज़वाब..
इस अँधेरे में भी कोई लौ रह रह टिमटिमाती है।
वाह भाई उदय जी ... बढ़िया रोचक प्रस्तुति...
ईमानदार ! अब क्या कहें, शायद यही दस्तूर हुए हैं
कभी कोल्हू के बैल, तो कभी सर्कस के शेर हुए हैं!
कटाक्ष की निरंतरता एक बिंब देने लगती है. बहुत खूब.
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