रात में निकला नहीं था, सर्द की ठंडक के डर से
अब हुआ मजबूर हूँ, धूप में भी चल रहा हूँ !
जिन्हें हम भूलने बैठे, वो अक्सर याद आते हैं
जो हमको याद करते हैं, उन्हें हम भूल जाते हैं !
फलक से तोड़कर, मैं सितारे तुमको दे देता
पर मुझको है खबर, तुम उन्हें नीलाम कर देते !
चलो मिलकर बदल दें, नफरतों को चाहतों में
हमारे न सही, किसी-न-किसी के काम आयेंगी !
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अब हुआ मजबूर हूँ, धूप में भी चल रहा हूँ !
जिन्हें हम भूलने बैठे, वो अक्सर याद आते हैं
जो हमको याद करते हैं, उन्हें हम भूल जाते हैं !
फलक से तोड़कर, मैं सितारे तुमको दे देता
पर मुझको है खबर, तुम उन्हें नीलाम कर देते !
चलो मिलकर बदल दें, नफरतों को चाहतों में
हमारे न सही, किसी-न-किसी के काम आयेंगी !
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9 comments:
चलो मिलकर बदल दें, नफरतों को चाहतों में
हमारे न सही, किसी-न-किसी के काम आयेंगी !
Behad sundar!
बहुत सुंदर भाव जी धन्यवाद
खूबसूरत भाव से सजी है रचना .
बहुत ही अच्छी।
bahut sundar........
सरलता के बिना कोई व्यक्ति अन्य आत्माओं का सच्च स्नेह नहीं पा सकता।बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
विचार-नाकमयाबी
bahot achchi lagi aapki kavita.
चलो मिलकर बदल दें, नफरतों को चाहतों में
हमारे न सही, किसी-न-किसी के काम आयेंगी !
क्या नेक खयाल है
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