Monday, August 30, 2010

रश्म-ओ-रिवाज

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अजब रश्म--रिवाज हैं तेरे
चाहते भी रहो, और खामोश भी रहो

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10 comments:

Anamikaghatak said...

वाह वाह्……॥क्या बात है…………॥

arvind said...

चाहते भी रहो, और खामोश भी रहो।

...khubsurat ehsaas.

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) said...

दो पंक्तियों में बड़ी गहरी बात|
ब्रह्मांड

Manish aka Manu Majaal said...

प्यार अंधे के साथ साथ गूंगा भी हो जाता है कभी कभी ! आँखे मगर फिर भी बोलती है!

vandana gupta said...

सच यही तो सबसे जानलेवा स्थिति है……………बेहद उम्दा बात कह दी चंद लफ़्ज़ों मे ही……………………गज़ब कर दिया।

KK Yadav said...

चाहते भी रहो, और खामोश भी रहो। ...बहुत खूबसूरती से भावों को पिरोया...उत्तम प्रस्तुति..बधाई.
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'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)

दिगम्बर नासवा said...

यही तो ख़ासियत है ....

प्रवीण पाण्डेय said...

द्वन्द घातक है।

vikram7 said...

sundar bhaav

गजेन्द्र सिंह said...

क्या बात है .....अच्छी पंक्तिया है ....
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com