Saturday, August 21, 2010

तौबा तौबा

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इक पल में, हज करके मैं बन गया हाजी
दूजे पल जब खुदा ने लिया इम्तिहां, ... तौबा तौबा

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8 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

संजय भास्‍कर said...

andaaz pasand aayaa

شہروز said...

क्या बात है भाई खूब शायरी हो रही है!

बहुत ही सुन्दर ! प्रभावी रचना !

माओवादी ममता पर तीखा बखान ज़रूर पढ़ें:
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

Manish aka Manu Majaal said...

नाम की गंगा रह गयी मैया,
पापियों का 'मजाल' प्रसाधन हो गई!

राज भाटिय़ा said...

अरे बाबा यह हाल तो हम सब का है, गंगा मै नहा कर हम सब अपने अपने पाप धो लेते है, ओर फ़िर से अगले ही पल फ़िर शुरु हो जाते है.... हम किसे धोखा देते है? उस अल्लाह को, उस भगवान को ?(मजा तब है हम हज करे, गंगा नहाये ओर फ़िर कोई बुराई अपने आंदर ना आने दे...) कितने मुर्ख है हम सब, बहुत सुंदर शॆर लगा आप का, धन्यवाद

Anonymous said...

वाह उदय साहब वाह, क्या जानदार शेर मारा है ... बिल्कुल हज व हाजी बनने का सही मतलब एक छोटे से शेर में ही समझा दिया है ... मतलब हाजी बनने के बाद गुनाह, रिश्वत, भ्रष्टाचार, अपराध को दूर से ही देख कर ... तौबा तौबा ... कर लेने का है, वाह बहुत खूब!

ray said...

मै ब्लोगर महाराज बोल रहा हूँ

मुझे पता चला है कि मिथिलेश भाई को महफूज भाई के खिलाफ भड़काने वाला कोई और नहीं वहीं नारी विरोधी अरविंद मिश्रा है । मुझे पता चला है कि अरविंद मिश्रा ने महफू भाई और अदा दीदी के खिलाफ ,मिथिलेश के कान भरे हैं । मिथिलेश एक अच्छा लेखक है, इस उम्र में जैसा वह लिखता है हर कोई नहीं लिख सकता , वह ऊर्जावान लेखक है जिसका अरविंद मिश्रा गलत उपयोग कर रहा हैं, आईये इस ढोंगी ब्लोगर का वहिष्कार करें , फिर मिलेंगे चलते-चलते । अभी ये मेरी पहली पोस्ट है, आगे और भी खुलासे होंगे । तब तक के लिए नमस्कार ।

संजय @ मो सम कौन... said...

बहुत शानदार शेर है जी।
वाकई विश्वास की असली परीक्षा तो मुश्किल समय में ही होती है।