काफ़ी हाऊस ... दोपहर का टाईम ... बोले तो टाईम पास का टाईम ... टाईम पास बोले तो थोड़ा फ़ुर्सत का टाईम ... मतलब चाय, काफ़ी, सिगरेट बगैरह बगैरह ... अरे भाई ये तो कहने का है, सच बोले तो टेंशन का टाईम ... टेंशन बोले तो नौकरी का टेंशन, खबर का टेंशन, न्यूज का टेंशन, बॉस का टेंशन .... टेंशन ही टेंशन भाई ... अरे यार इतना टेंशन तो काए को नौकरी करता है ... इसीच्च लिये तो इधर बैठा है भाई ... चल चल टेंशन लेने का नहीं अपुन आ गयेला है ... अपुन बोले तो अपुन का बॉस "उदय" आ रहेला है ... झक्कास ... अभीच्च आप लोगों का टेंशन ... बोले तो चुटकी में खल्लास ... "उदय" कौन ... बोले तो कुछ भी नहीं पर बहुत कुछ है ... कुछ लिखता-पढता है .... "सॉलिड दिमाग" रखता है भाई ...
... "उदय" का इंट्री ... बोले तो ... काफ़ी हाऊस चका-चका ... सब टाईम-टू-टाईम ... बॉस सल्यूट मारता है ... हां हां क्या हाल चाल है .. सब झक्कास बॉस ... आपका आर्डर रेडी हो रहेला है ... बस एक-दो मिनट ... बॉस, ऎ बाजु बाला टेबल मे कुछ टेंशन ... बता बता क्या बात है ... बोले तो बडे लोग हैं ... चल चल बोल, छोटा-बडा छोड ... भाई ये सब टेंशन में बैठेईला है ...क्या हुआ बता ... टी.व्ही. न्यूज वाले हैं ... बता बता क्या बात है ... इनका नौकरी खतरे में लग रहेला है ... कुछ मदद मांगता क्या? ... हां बॉस ... बुला बुला ...
... "उदय" की टेबल पर न्यूज चैनल वाले ... आईये आईये ... कैसे हैं ... कुछ खास नहीं बस यूं ही ... बोलो बोलो अभी अभी ये वेटर बोल रहा था कि आप लोग टेंशन में है ... हां 'उदय भाई' टेंशन तो है पर क्या बताएं शर्म आती है ... बिंदास बोलो क्या बात है ... सभी एंकर एक साथ बोल पडे ... बॉस का टेंशन है भाई ... बोले तो बास चाहता है कि कुछ नया करो ... नया करो ... पच्चीस न्यूज चैनल चल पडेला है ... नया खबर लायें तो कहां से लायें ... बस यहीच्च टेंशन है ... बस इत्ती सी बात ...
... तुम लोग सारी दुनिया को टेंशन देता है और खुदिच्च टेंशन में हो ... सब लोग कान "खुजा" के बैठो अपुन एक बार बोलेगा ... रिपीट करने को नई मांगता ... पाव-भाजी, समोसा-गुपचुप दिखाया हिट था ... पानी पर चलना दिखाया हिट था ... रावण का ममी दिखाया हिट था ... अब गौर से सुनो ये कोई खबर था क्या ... नई था सब बकवास था ... पर हिट था ... ये अपुन के देश का जनता है ... हर टाईम टोपी पहनने को घूमते रहता है बस नया आदमी चाहिये टोपी पहनाने वाला ... लो एक "मंत्र" ले जाओ ... सब लोग अपने अपने बॉस के कान में "फ़ूंक" दो ... "मायने यह नहीं रखता कि पब्लिक क्या देखना चाहती है, मायने यह रखता है कि हम क्या दिखाना चाहते हैं" ... क्या समझा ... बोले तो ... "मायने यह नहीं रखता कि पब्लिक क्या देखना चाहती है, मायने यह रखता है कि हम क्या दिखाना चाहते हैं" ... थैंक्यू बॉस ... थैंक्यू ... !!!!
15 comments:
जाओ जो दिखाना है दिखाओ ... पर लपेट लपेट के उलट-पुलट के।
जोरदार उदय भाई
टीआरपी के लिए कुछ भी करेगा।
अच्छा व्यंग्य....मज़ा आ गया..जमे रहो भाई
समय हो तो इस कविता नुमा अंशों को पढ़ें और अपनी माकूल राय दें
बाज़ार,रिश्ते और हम http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2010/07/blog-post_10.html
शहरोज़
अंकल अपुन को कोई टेंशन नही है हा हा हा ।
अंकल अपुन को कोई टेंशन नही है हा हा हा ।
अंकल अपुन को कोई टेंशन नही है हा हा हा ।
अंकल अपुन को कोई टेंशन नही है हा हा हा ।
अंकल अपुन को कोई टेंशन नही है हा हा हा ।
अंकल अपुन को कोई टेंशन नही है हा हा हा ।
अंकल अपुन को कोई टेंशन नही है हा हा हा ।
अंकल अपुन को कोई टेंशन नही है हा हा हा ।
सब लोग कान "खुजा" के बैठो अपुन एक बार बोलेगा
अंकल इसका मतलब क्या है ?
अच्छा व्यंग्य......
उदय भाई हामरा सालम!!!! मुझे भाई लोगो से बॊत डर लगता है
अच्छा लेखन.
टीवी वालों के साथ अक्सर ऐसा हो जाता है.
राजकुमार जी के विचारों से सहमत हूँ......
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