जब से छोडी हैं बच्चों ने उडानी पतंगें
तब से आसमां भी बदरंग-सा लगने लगा है।
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दिनों में जिंदगी का सफ़र होता कहां पूरा
इसलिये रातों में भी जाग लेता हूं।
तब से आसमां भी बदरंग-सा लगने लगा है।
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दिनों में जिंदगी का सफ़र होता कहां पूरा
इसलिये रातों में भी जाग लेता हूं।
10 comments:
दिनों में जिंदगी का सफ़र होता कहां पूरा
इसलिये रातों में भी जाग लेता हूं...
बहुत बढ़िया उदय जी
बहुत बढ़िया
दोनों ही शेर...बहुत जबरदस्त!!
इस लिए तकदीर में,
मेहनत के पैबंद सिया करती थी ||
Bahut anootha sher hai!
Waise,pahla wala bhi bahut sundar hai!
सुन्दर लेखन।
अंकल मुझे पतंग उडाना है।
अंकल मुझे शेर के बच्चे चाहिये।
वाह जी उम्दा शेर है
अंकल मै छत पर पतंग उडा रहा हूं।
उम्दा शेर है......
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