..... यह मनन करने योग्य है, सुबह से उठकर रात के सोने तक क्या हम वह ही करते हैं जो मन कहता जाता है, चाय, दूध, नाश्ता, पान, गुटका, जूस, मदिरा, वेज, नानवेज, प्यार, सेक्स, दोस्ती, दुश्मनी, चाहत, नफ़रत ... संभवत: वह सब करते हैं जो मन कहता जाता है .....
क्या हम मन के गुलाम हैं !
क्या हम मन के गुलाम हैं !
10 comments:
मन की गुलामी छूट जाये तो साधु हो जायेंगे. :)
बस यही गुलामी ही स्वतंत्रता है।
अब चाहे इसे गु्लामी समझा जाए
या स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार्।
जय हो
ये मन तो बावरा है ....
अंकल अंकल हम भी आचार्य जी बनूंगा।
अंकल अंकल हम भी आचार्य जी बनूंगा।
अंकल अंकल हम भी आचार्य जी बनूंगा।
अंकल अंकल हम भी आचार्य जी बनूंगा।
हम अपनी इछाओं के ग़ुलाम हैं. इच्छाओं का कोई अंत नहीं.
bhaai jaan hm mn se zyaada mjburi ke ghulaam hen or sch sir yhi he. akhtar khan akela kota rajsthan
मन चंचल बड़ा शरारती कौन नही इसका गुलाम भवसागर पार का साधन 'कलयुग' मे प्राण छूटने से पहले कोई ले लेता राम का नाम। जय जोहार्……
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