Saturday, April 3, 2010

मंथन से ही सृजन संभव है !

"जिंदगी में नियमित उजाले इंसान को लापरवाह बनाते हैं ..... होता ये है कि जब सब कुछ ठीक चलते रहता है तब इंसान कुछ अलग करने के विषय में नहीं सोचता वरन वह वर्तमान व्यवस्थाओं से ही संतुष्ट हो जाता है, जबकि उतार-चढाव इंसान को उनसे लडने,जूझने और नया सृजन करने हेतु नये विचार मन में जागृत करते हैं, जब विचार जागृत होंगे तब ही इंसान कुछ नया करने के लिये मंथन करेगा ..... मंथन से ही सृजन संभव है .... सच कहा जाये तो प्रत्येक अविष्कार की आधारशिला मंथन ही है, मंथन से कुछ करने के लिये सिर्फ़ दिशा का निर्धारण नहीं होता वरन रूपरेखा व लक्ष्य का निर्धारण कर लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग भी प्रशस्त होता है।"

7 comments:

मनोज कुमार said...

चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥

उम्मतें said...

सही कहते हैं !

राजकुमार सोनी said...

कोरी जी,
आज आपकी प्रतीक्षा होती रही, फिर पता चला कि आप किसी काम से व्यस्त है। खैर.. आपको मैं लगातार पढ़ रहा हूं। आपकी रचनाओं में सबसे अच्छी बात यह है कि उसमें सारा कुछ दिल से हैं। एक और बात जिससे मैं जुड़ा हुआ महसूस करता हूं वह यह कि आप अपने निजी विचारों के साथ-साथ दूसरों के विचारों को भी सम्मान देना जानते हैं।

संजय भास्‍कर said...

रूपरेखा व लक्ष्य का निर्धारण कर लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग भी प्रशस्त होता है।"

सही कहते हैं !

राज भाटिय़ा said...

आप से सहमत है जी

M VERMA said...

मंथन से ही सृजन संभव है
यही सत्य है
साधुवचन

सु-मन (Suman Kapoor) said...

सही लिखा है आपने जिन्दगी में अगर मंथन नही तो सृजन ही नही ............

मेरे ब्लॉग पर आने के लिये धन्यवाद