Sunday, September 9, 2018

तीखी घड़ी

01

कुसूर उनका नहीं है 'उदय'
दिल अपना ही तनिक काफ़िर निकला !

02

दिल्लगी ......... नहीं .. ऐसा कुछ भी नहीं है
बस, कुछ यूँ समझ लो, वो हमें पहचानते हैं !

03

बहुत काफी नहीं थे फासले
मगर खामोशियों की जिद बड़ी थी !

04

बड़ी तीखी घड़ी है
हैं भक्त औ भगवान दोनों कटघरे में

एक ताने तीर है
तो एक पकड़े ढाल है

कौन सच्चा ..
कौन झूठा ..
धर्म विपदा में खड़ा है !

05

सिर्फ कत्ल का इल्जाम है बेफिक्र रहो
यहाँ सजी सब दुकानें अपनी हैं !

06

अनार, सेव, अँगूर के बगीचों पे उनका कब्जा है लेकिन
दलितों की बाड़ियों में लगे बेर उन्हें चुभते बहुत हैं !

07

वो खुद ही 'खुदा' होने का दम भर रहे हैं
जो हिन्दू-मुसलमां में भेद कर रहे हैं !

~ उदय

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

'एकलव्य' said...


निमंत्रण विशेष :

हमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।

यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !

'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/