आ, चल, बैठें, देखें,
है कितनी .. कड़वी-मीठी .. मधुशाला ...
बिना चखे
हम कैसे कह दें, है पसंद नहीं हमें मधुशाला,
भीड़ लगी तुम देखो कितनी
संग पी रहे .. हिन्दू-मुस्लिम ..
अमीर-गरीब ...
मिल-बाँट कर ... मधुशाला ....
छोड़, उतार, अहं का चोला
चल, जांचें, परखें, मधुशाला ...
बिना चखे
हम कैसे कह दें, है पसंद नहीं हमें मधुशाला !
~ श्याम कोरी 'उदय'
है कितनी .. कड़वी-मीठी .. मधुशाला ...
बिना चखे
हम कैसे कह दें, है पसंद नहीं हमें मधुशाला,
भीड़ लगी तुम देखो कितनी
संग पी रहे .. हिन्दू-मुस्लिम ..
अमीर-गरीब ...
मिल-बाँट कर ... मधुशाला ....
छोड़, उतार, अहं का चोला
चल, जांचें, परखें, मधुशाला ...
बिना चखे
हम कैसे कह दें, है पसंद नहीं हमें मधुशाला !
~ श्याम कोरी 'उदय'
1 comment:
भीड़ लगी तुम देखो कितनी
संग पी रहे .. हिन्दू-मुस्लिम ..
अमीर-गरीब ...
मिल-बाँट कर ... मधुशाला .
बस यही आकर सब एक होते है
बहुत खूब
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