01 -
गर कोई हुनर सीखना है
तो
तुम हमसे सीखो
क्या रंग,
क्या गुलाटी,
औ क्या मौक़ा परस्ती ?
…
02 -
यकीनन यकीन है तुम पर
तुम ...
वफ़ा करो न करो,
पर...... बेवफाई न करोगे ?
…
03 -
काश ! हम भी होते, तुम जैसे
तो …
जरूर
एक बार
कोशिश करते
जमीं से आसमां तक
एक, अनोखा जाल बुनने की ?
…
04 -
मौज भी अपनी है, औ मस्ती भी है अपनी
कर्म भी अपने हैं
औ भूमि भी है अपनी,
आओ … चलें … बढ़ें … ढूंढें …
हीरे-मोती … हम, अपनी ही जमीं में
और, करें साकार … कर्म … अपने-अपने !
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