न ठीक से दाना - न ठीक से पानी
बस इत्ती ही है उनकी मेहरवानी ?
…
आओ,
लिपट जाएँ - सिमट जाएँ
हम, एक दूजे में,
लोग, फिर …
ढूंढते रहें हमें, एक दूजे में ?
…
कल एक चाँद को दूजे चाँद का इंतज़ार था
और हमें, … … … … … दोनों का था ?
…
अब जब उन्ने हमें आस्तीन का सांप कह ही दिया है
तो फिर, अब, उन्हें, डसने में हर्ज ही क्या है 'उदय' ?
…
अब तो, 'खुदा' ही जाने कब छोड़ेंगे वो आवारगी अपनी
जबकि कब्र के इर्द-गिर्द ही भटक रही है जिंदगी उनकी ?
…
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