Tuesday, October 14, 2014

आस्तीन का सांप ...

न ठीक से दाना - न ठीक से पानी 
बस इत्ती ही है उनकी मेहरवानी ?  
… 
आओ, 
लिपट जाएँ - सिमट जाएँ 
हम, एक दूजे में, 
लोग, फिर … 
ढूंढते रहें हमें, एक दूजे में ?  
… 
कल एक चाँद को दूजे चाँद का इंतज़ार था 
और हमें, … … … … …  दोनों का था ? 
… 
अब जब उन्ने हमें आस्तीन का सांप कह ही दिया है
तो फिर, अब, उन्हें, डसने में हर्ज ही क्या है 'उदय' ?
… 
अब तो, 'खुदा' ही जाने कब छोड़ेंगे वो आवारगी अपनी 
जबकि कब्र के इर्द-गिर्द ही भटक रही है जिंदगी उनकी ? 
… 

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