न कोई हिसाब, और न कोई किताब
मर्जी के मालिक हैं, हम सरकार हैं ?
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न जख्म, औ न ही हैं कहीं लहू के निशाँ
न जख्म, औ न ही हैं कहीं लहू के निशाँ
चोट दिल पे है सिसकियाँ कर रही बयाँ ?
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तुझे देखूं, या डूब जाऊं तुझमें
है तेरा ये हुस्न शबाव पे आज ?
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1 comment:
वाह कोरी जी ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !!
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