गर, खुबसूरती का, कोई पैमाना होता तो हम बताते
कि इन आँखों में तुम किस कदर बस गए हो आज ?
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कच्ची मिट्टी का घरौंदा है अपना
सच ! आगे जैसी तुम्हारी मर्जी ?…
न ठीक से वफ़ा, न बेवफाई
कुछ ऐसे हैं मिजाज उनके ?…
सच ! चुकता किया है उन्ने कोई पुराना हिसाब-किताब
वर्ना, मंहगाई के इस दौर में कोई दिल तोड़ता है आज ?
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तेरी खुबसूरती पे, एतबार नहीं है हमें
ये आँखों का भ्रम भी तो हो सकता है ?
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