क्यूँ मियाँ, क्यूँ तुम … आज इतने ठप्प बैठे हो
हमने तो सुना था गप्प से तुम बाज नहीं आते ?
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सच ! तेरे इस नूर पे, सिर्फ हक़ हमारा है कहाँ
सच ! तेरे इस नूर पे, सिर्फ हक़ हमारा है कहाँ
जिसे देखो उसी की नजरें तुझपे जाके हैं टिकीं ?
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खुद से खुद की शिकायत
इतना सितम क्यूँ यारा ?
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अब तुम जुदा होके भी खफा हो यारा
भला अब इसमें गल्ती कहाँ है मेरी ?
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कैसे किस्से, औ कैसी कहानी 'उदय'
चोरों की बस्ती है, चोरों का राज है ?
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6 comments:
मित्र ! लम्बी बीमारी के बाद कल से आपके साथ हूँ !अच्छी रचना है !
बहुत खूब...
कैसे किस्से, औ कैसी कहानी 'उदय'
चोरों की बस्ती है, चोरों का राज है ?
………… सबकुछ उन्ही का इसीलिए तो बात भी उनकी ही होती है हम तो सुनने वाले भर के रह गए
बहुत खूब!
bahut khoob..
visit me to read :गुज़ारिश ...
http://rahulpoems.blogspot.in/2014/06/blog-post.html
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