न तो तुम 'खुदा' हो, और न ही हैं हम
फिजूल के मुगालते अच्छे नहीं यारा ?
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ये तू, फिर किधर को ले चल पड़ा है मुझे
कुछ घड़ी… चैन की सांस तो ले लेने दे ?
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सच ! अब जब जिस्म की कीमत है करोड़ों में 'उदय'
फिर जिन्ने ईमान बेचा है वो तो धन्ना सेठ होंगे ??
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तू,………… पागल है, मूर्ख है, धूर्त है
कितना समझाऊँ तुझे, ये राजनीति है ?
…ये कैसी सियासत है 'उदय' वतन में मेरे
चित्त भी उनकी है, और पट्ट भी उनकी ?
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2 comments:
सुन्दर पंक्तियाँ , आप पूछ रहें हैं उनसे -
ये कैसी सियासत है 'उदय' वतन में मेरे
चित्त भी उनकी है, और पट्ट भी उनकी ?
… पर सियासत इसी का ही नाम है ज़नाब सुन्दर
सार्थक अभिवयक्ति......
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