Sunday, May 25, 2014

सियासत ...

न तो तुम 'खुदा' हो, और न ही हैं हम
फिजूल के मुगालते अच्छे नहीं यारा ?
ये तू, फिर किधर को ले चल पड़ा है मुझे
कुछ घड़ी… चैन की सांस तो ले लेने दे ?
सच ! अब जब जिस्म की कीमत है करोड़ों में 'उदय'
फिर जिन्ने ईमान बेचा है वो तो धन्ना सेठ होंगे ??

तू,………… पागल है, मूर्ख है, धूर्त है
कितना समझाऊँ तुझे, ये राजनीति है ?

ये कैसी सियासत है 'उदय' वतन में मेरे
चित्त भी उनकी है, और पट्ट भी उनकी ?
… 

2 comments:

dr.mahendrag said...

सुन्दर पंक्तियाँ , आप पूछ रहें हैं उनसे -
ये कैसी सियासत है 'उदय' वतन में मेरे
चित्त भी उनकी है, और पट्ट भी उनकी ?

… पर सियासत इसी का ही नाम है ज़नाब सुन्दर

विभूति" said...

सार्थक अभिवयक्ति......