ईमानदारी से जीतते तो कोई बात होती
छल औ बेईमानी तो हम भी जानते हैं ?
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सन्नाटा और शोरगुल दोनों एक साथ हैं 'उदय'
ऐसे हालात जियादा देर तक अच्छे नहीं होते ?
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वो कहते हैं कि अब तुम, हमें ही 'खुदा' समझ लो
क्या रख्खा है, मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में ?
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हम बुत हैं, हमें किसी का भय नहीं है
कोई हमसे झूठ की उम्मीद न रक्खे ?
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ये जीत, ये हार, हजम हो तो हो कैसे 'उदय'
3 comments:
साधू साधू
लोकतंत्र का यही उसूल है !
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