Thursday, February 21, 2013

फेसबुक बाबा ...


वे ... कूद पड़ते हैं ... 
झूम उठते हैं ... लपक पड़ते हैं ! 

जब भी देखते हैं ...
किसी, ... महिला मित्र की पोस्ट ... 
फेसबुक पर !

फिर ... भले चाहे ... 
पोस्ट ... 
बे-सिर-पैर की ही क्यों न हो !

उन्हें तो ... बस ... 
लाईक औ कमेन्ट की, होती है जल्दी !

जल्दी ... हो भी क्यों न .. 
डर होता है ... उन्हें ... 
पिछड़ जाने का ... बिछड़ जाने का !

इसलिए - 
घूमते रहते हैं ... मंडराते फिरते हैं ... 
रात-दिन ... 
हाजिरी ... देने की फिराक में !

न सिर्फ बूढ़े-खूसट, लौंडे-लपाड़े ... 
वरन ... अच्छे-खासे सम्पादक-प्रकाशक भी ...
जय हो ... फेसबुक बाबा ... जय हो ??

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

यही फेसबुकिया संस्कृति बन गयी है।