Friday, January 18, 2013

आबरू ...


क्राईटेरिया ...
सुनो 'उदय'... जा के... कह दो सब से ... 
सिर्फ ... 
कुत्ते-औ-कुकुरमुत्ते ... ही हैं ... 
अपने .... क्राईटेरिया में !
सिबाय उनके ... 
किसी और को, ... 
बादशाहत ............ नसीब नहीं होगी ??
... 
मन ...
जी चाहता है ...
तुम्हें ..... खोलने का ... 
प्रयास करूँ !
क्यों ? 
क्योंकि - 
तुम... बेहद अनोखे हो !!
सिर्फ ... टटोल कर ... 
मन नहीं भरता ??????
...
रफूचक्कर ... 
जब तक ................ टन्न-
टन्न ... 
की आवाज ......... आती रही ...
सब ... टन-टनाते रहे ...
बाद उसके ... जब ...
भुस्स ... फुस्स ... फुस्स ... 
भुस्स ... 
होने .......... लगी ...........
तो ... सब के सब .....
हुए ....... हो गए ....... रफूचक्कर ??
... 
...
... 
वजह कुछ तो जरुर होगी 'उदय', आज उनके अजनवीपन की 
वर्ना, देखते ही बांहों में सिमटने से रोक नहीं पाते थे खुद को ?  
... 
उनका, जब मन करता है.......... तब ईमान बेच देते हैं 
शायद, यह एक वजह हो, आज उनकी ऊँची कीमतों की ? 
... 
धड़ यहाँ पे छोड़ के, तुम सर उठा के ले गए 
देखना इक दिन वही, काल बन मंडराएगा ? 
... 
न जाने,... क्या घड़ी थी ... जो अजनबी बना गई हमको 
वर्ना, ... हर घड़ी ... उनकी धड़कनों में नाम था अपना ? 
... 
ऐंसा सुनते हैं 'उदय', कि - सरकार होश-औ-हवाश में है 
गर कोई है, ........................ तो जनता मदहोश है ? 
... 
सड़क पे आबरू उनकी... बिखरी पडी है 
फिर भी कहते हैं 'उदय', कि पाक हैं वो ? 
... 
कोई, पाक हो के भी नापाक है 
हे 'खुदा', रहम कर बन्दों पर ? 
... 
यकीनन यकीं मानिए, कोई और नहीं है तुम्हारे सिबा 
पीछे.... किसी साये को देख के तुम्हें भ्रम हुआ होगा ? 
... 
बात उनकी, इतने भी पते की नहीं है 'उदय' 
कि - उस पे,........ टिकट लगाया ही जाए ?
... 

2 comments:

vandana gupta said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (19-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!

प्रवीण पाण्डेय said...

सन्नाट और सपाट..