डर ...
सुनो 'उदय' ... उसे कुछ मत कहना !
क्यों ?
क्योंकि -
वो ..... बहुत डरी व सहमी हुई है !!
क्यों, ऐंसा क्या हुआ ??
पिछले ... दो-तीन दिनों से ...
उसकी ... व उसके रंग-रोगन की ...
किसी ने ... तारीफ़ नहीं की है !!
सुनते हैं ... ऐंसा डर है हमें ...
कि -
कहीं आपकी ... तीखी टिप्पणी से ...
वो .... टूट कर .... बिखर न जाए ???
...
...
जिस्म की आग...
तुम तो, .... आज .... निरंतर ...
पिघलने दो ...
टपकने दो ...
जिस्म की आग... बूँद-बूँद बन के...
उसने हमें ... बेहद ...
तपाया है ...
जलाया है ... बरसती रात में भी ?
और ...... ठिठुरती ठण्ड में भी ??
...
...
पैसा ... हाँथ की खुशबू है !!!
न जाने ... किसने ? ... कब ?? ... क्यों ???
पैसों को ... हाँथ का मैल कहा था ... कहा है ????
वह मूर्ख था ?
धूर्त था ??
या महाविद्वान था ???
यह सवाल ... बार बार ... मेरे जेहन में गूँज रहा है !!!
क्यों ?
क्योंकि -
पैसा ... हाँथ का मैल ... हो ही नहीं सकता !
वो तो ... अर्थात पैसा तो ...
सदा-सदा से ... सदियों से ... युगों युगों से ...
हाँथ की ... खुशबू रहा है !!
जब तक ... जब जब ... हाँथों में ...
पैसारुपी ... खुशबू रही है ...
तब तब ... तब तक ... लोगों ने ... ज़माने ने ...
हाँथों से ... हाँथ मिलाया है ... हाँथों को चूमा है ...
और तो और ...
हाँथों को ... अपने माथे से भी लगाया है !!
दोस्तों ... यारों ... मित्रों ...
पैसा ... हाँथ का मैल नहीं ... हाँथ की खुशबू है !!!
...
...
...
बात निकली है तो अब तुम मेरी भी सुन लो
अस्मत के सौदाई भी कल पुरुष्कृत होंगे ??
...
गणतंत्र की शान-औ-शौकत में डूबा है वतन
मगर अफसोस,... अब भी कहीं गुलामी है ?
...
शेर की खाल में उन्ने खूब छुपाया था खुद को
पर, देर तक जात छिपती कहाँ है भेड़िये की ?
...
अब तुम इतने भी सिकुड़ के मत बैठा करो
कि..... चहूँ ओर से देखन में सपाट लगो ?
...
आओ चलें, गंगा में... एक डुबकी लगा लें
सुनते हैं, तमाम पाप धुल जायेंगे अपने ?
...
बुझदिलों की सियासत में, बहादुरों को नमन
कुर्बां हुए जवानों.... जय हिन्द-जय हिन्द ??
...
उनकी भिखमंगाई की.... हद तो देखो 'उदय'
करोड़ों जेब में हैं, फिर भी कटोरा हाँथ में है ?
...
बगैर कुछ, बोले-सुने..... वे मुस्कुराए हैं
लगता है, क़यामत की घड़ी नजदीक है ?
...
लो, अब उन्हें भी, उपाधी बाँटने का जिम्मा मिल गया है
जिनकी खुद की 'उदय', ...... कहीं कोई औकात नहीं है ?
...
हम पे,.. बेवफाई के इल्जाम पुराने हो गए हैं
गर, कुछ और है शिकवा-शिकायत तो कहो ?
...
ऊँची शख्सीयत हो के भी उसके हाँथ मेरे कंधे तक नहीं पहुँचे
सुनते हैं, जब जब उठे हैं हाँथ उसके .... तो पांवों तक उठे हैं ?
...
3 comments:
"शेर की खाल में उन्ने खूब छुपाया था खुद को
पर, देर तक जात छिपती कहाँ है भेड़िये की "
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
" बहुत भावपूर्ण संवाद!"
Very nice uday ji
Post a Comment