सच ! कब तलक हम भागेंगे, मुहब्बत से 'उदय'
किसी न किसी दिन तो पकड़ में आ ही जाएंगे ?
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एक हम ही नादां थे 'उदय', जो सीरत के दीवाने थे
वर्ना, शहर में कौन है .... जो सूरत पसंद नहीं है ?
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जी चाहे उतनी देते रहो दुहाई तुम 'उदय', प्यार की
पर, हमने जिसे चाह के देखा, वही बे-वफ़ा निकला !
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महज एक चिंगारी से दहकने लगते हैं शहर के शहर
अपने जज्बों को आग दो यारो !!
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मोहब्बत अभी भी ज़िंदा है 'उदय'
वर्ना, जुबां से नाम अपना मिट गया होता !
1 comment:
मन किसका कब कहाँ छिपा है..
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