Saturday, June 23, 2012

चिंगारी ...


सच ! कब तलक हम भागेंगे, मुहब्बत से 'उदय' 
किसी न किसी दिन तो पकड़ में आ ही जाएंगे ? 
... 
एक हम ही नादां थे 'उदय', जो सीरत के दीवाने थे 
वर्ना, शहर में कौन है .... जो सूरत पसंद नहीं है ? 
... 
जी चाहे उतनी देते रहो दुहाई तुम 'उदय', प्यार की 
पर, हमने जिसे चाह के देखा, वही बे-वफ़ा निकला ! 
... 
महज एक चिंगारी से दहकने लगते हैं शहर के शहर 
अपने जज्बों को आग दो यारो !!
... 
मोहब्बत अभी भी ज़िंदा है 'उदय' 
वर्ना, जुबां से नाम अपना मिट गया होता !

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

मन किसका कब कहाँ छिपा है..