देर-सवेर तो सभी को मिट्टी में मिल जाना है
कहो यारा, फिर आज घमंड किस बात का है ?
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समय के बुरे दौर में, हमने क्या खोया वो तो हम जानते हैं
पर, क्या पाया है ये तो आने वाला समय ही बताएगा ?
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लो, वो शायरी में कायदा-क़ानून ढूंढ रहे हैं 'उदय'
उफ़ ! जैंसे एक वही साहित्य के ज्ञाता हों ?
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'खुदा' ने रौशनी उतनी ही दी थी 'उदय', जितने अंधेरे थे
फिर, आगे का सफ़र तो दिन के उजालों में मुक़र्रर था !
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गरीब की लंगोटी, औ देश की लुटिया
ये किन लोगों के हांथों में है 'उदय' ?
7 comments:
सटीक व सन्नाट..
बेहद उम्दा ...
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - माँ की सलाह याद रखना या फिर यह ब्लॉग बुलेटिन पढ़ लेना
आज का दौर भी क्या अजीब दौर है अन्धेरा अभी भी उजाले पर हावी है
अंधेरों से बचा कर रखे थे हमने बचपन के कुछ सुनहरे सपने
अधेडावस्था में भी आज उजालों को तरसते है अँधेरा अभी भी भारी है
जिस उजाले को तरसता रहा बचपन सारा अधेडावस्था में वोही तड़पन ब़ाकी है
seedi baat no bakwas...jabardast
sundar abhivyakti !
वाह वाह ।
wah wah wah.....nice post
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