टैक्स के भरोसे ही तो सरकारी टैक्सियाँ चल रही हैं 'उदय'
वर्ना, किसकी मजाल जेब के पैसों से पानी भी पी ले ?
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क्या नैतृत्व का सिर, फिर गया है 'उदय'
जो उन्हें आमजन नजर नहीं आते ?
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चाहते तो हम भी हैं 'उदय', एक उड़ान में नाप लें आसमां सारा
मगर डरते हैं, कहीं वहां अकेले न रह जाएं ?
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गैरों के सामने मुस्कुराने की सजा, हमें खूब मिली है 'उदय'
चिढ-ही-चिढ में उन्ने रकीबों को अपना बना लिया है !
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उनसे रूठकर हमने 'उदय', कहीं ऐंसा तो नहीं किया
कि - अपने ही पांव में कुल्हाड़ी मार ली हो ?
1 comment:
बहुत खूब..
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