इरादे क्या हैं उनके, हमें आगरा बुलाने के
उफ़ ! किस्से तो, दो ही मशहूर हैं वहां के !
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काश ! हम भी पत्थर होते 'उदय'
तो शायद, किसी के सजदे से 'खुदा' हो गए होते !!
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न जाने किस चाह में, उन्ने दरवाजा खटखटाया है
उफ़ ! कल तक तो, उन्हें परहेज था हमसे !!
2 comments:
बहुत खूब उदय भाई ...
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - ब्लॉग बुलेटिन की राय माने और इस मौसम में रखें खास ख्याल बच्चो का
आगरा में तो दो कब्रें भी हैं।
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