परिंदे तक तो महफूज नहीं है तेरे शहर की फिजाओं में
अगर हम ठहरें, तो भला क्यूँ ठहरें ?
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गर शक है, तुझे मेरी आशिकी पर
तो उठा खंजर, दिल को खुद ही टटोल ले यारा !
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क्या खूब 'सिस्टम' हुआ है मुल्क में 'उदय'
कहीं सिसकियाँ, तो कहीं शोर है !!
1 comment:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
लिंक आपका है यहीं, मगर आपको खोजना पड़ेगा!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
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