Wednesday, May 16, 2012

धूप ...

हर अति का अंत तो तय है 'उदय'
फिर भृष्टाचार  से, क्यूँ जन हुआ मायूस है ?
...
तेरे रहमो-करम से, हम धूप में भी सलामत हैं 'सांई'
वर्ना, लोग हैं जो छाँव में भी झुलसे हुए हैं !

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अच्छाई बनी रहे, उसका अन्त न हो।