ढेरों तब्दीलियों के बाद, बामुश्किल बदल पाए हैं खुद को
फिर भी तेरी यादें ... ... उफ़ ! जेहन को छेड़ जाती हैं !!
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वह शब्दरुपी अंगारे उड़ेल कर चला गया है 'उदय'
उफ़ ! लगता नहीं, जलन मिट पायेगी !!
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सच ! दरकती दीवारें बयां कर रही हैं हाल-ए-लोकतंत्र
सख्त है बुनियाद, क्यूँ न इमारत नई खड़ी की जाए ?
4 comments:
सच ! दरकती दीवारें बयां कर रही हैं हाल-ए-लोकतंत्र
सख्त है बुनियाद, क्यूँ न इमारत नई खड़ी की जाए ?
vaah ....bahut umda khayaal hai.
teeno sher bahut achche ha
बहुत सटीक...
bhtrin badhaai ..akhtar khan akela kota rajsthan
फिर एक नई शुरुआत .....
कर के देखी जाए...!
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