जी चाहे उतना घोलने दो, उन्हें जहर पानी में
हम पीकर, उसे भी अमृत बना लेंगे !
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बिना माली, और बगैर बहारों के भी, हम खिल रहे हैं 'उदय'
पलाश सही, पर दिल को - मन को - आँखों को, भाते तो हैं !
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उसने एक बार छूकर मुझे, अपना बना तो लिया है 'उदय'
पर डर है, दोबारा न छुआ तो, कहीं मैं पत्थर न हो जाऊं !
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