तेरे अल्फाजों में साफगोई नजर नहीं आ रही है दोस्त
तू तारीफ़ में है, या नाराजगी है !!
...
शायद, कहीं कुछ थी बुराई, अन्दर ही मेरे
मैं अच्छा करता रहा, और बुरा होता रहा !
...
आज फिर सारे दिन 'उदय', हम इंतज़ार करते रहे उनका
सच ! कुसूर अपना ही था, जो झूठों पे एतबार था हमको !!
5 comments:
तारीफ ही है जी, आप तो खामखा नाराजगी समझ बैठे....सुन्दर।
पहली और दूसरी सूक्तियां बेहतरीन! मज़ा आ गया..
बहुत खूब
चेहरा कहाँ सब समझ पाते हैं।
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