जब जब चाहा मैंने, रंग जाना प्यार के रंगों में
न जाने क्यूँ, तूने सिर्फ गुलाल से मन भाया है !
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सच ! तूने ये किस रंग में रंग दिया है मुझे
तेरी सखियाँ ही मुझसे खफा-खफा सी हैं !!
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वैसे भी तेरे प्यार का रंग कुछ इस कदर चढ़ा है मुझ पे
कि, किसी और रंग के चढ़ने की गुंजाइश नहीं दिखती !
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सच ! वैसे पिछले साल का रंग उतरा नहीं है
न जाने, इस बार फिर से, तेरे क्या इरादे हैं ?
1 comment:
ये रंग तो हर साल कुछ और चढ़ जाते हैं, उतरते कहाँ हैं..
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