Friday, December 23, 2011

ए वतन मेरे वतन ...

वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

जमीं से आसमां तक
तुझको है मेरा नमन
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

भूख से, मंहगाई से
जीना हुआ दुश्वार है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

भ्रष्ट हैं, भ्रष्टाचार है
धोखे-घुटालों की भरमार है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

मद है, मदमस्त हैं
खौफ है, दहशत भी है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

भूख है, गरीबी है
सेठ हैं, साहूकार हैं
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

अफसरों की शान है
मंत्रियों का मान है
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

आज गम के साए में
चल रहा मेरा वतन
वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !

वतन मेरे वतन
क्या करूं मैं अब जतन !!

5 comments:

Rajesh Kumari said...

deshprem ki bhaavna se autprot sundar kavita.vandemataram.

प्रवीण पाण्डेय said...

आपकी पीड़ा में हमारे भी सुर सम्मिलित हैं।

अनुपमा पाठक said...

पीड़ा की सहज अभिव्यक्ति!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

उम्मीद ही की जा सकती है कुछ अच्छा होने की.

Dr.J.P.Tiwari said...

एक नंगा सत्य, आज का कटु सत्य जिसे कहने का साहस बहुत थोड़े लोग ही कर पातें हैं. इस साहस और प्रस्तुति को सलाम. आग जलती रहे, मार्ग प्रशस्त करती रहे, यही स्नेहाशीस है.