Saturday, December 24, 2011

पुरूस्कार ...

भाई साब ... पुरूस्कार -
बेच दो !
खरीद लो !
चरणों में रख दो !
किसी की जेब में डाल दो !

किसने मना किया है ?
कौन मना कर सकता है ?
पर
किसी योग्य के सिर पर -
सम्मान के रूप में मत सजाओ !!
और, अगर
सजाओ भी तो तब, जब ... !!

ये क्या है ?
ये कौन-सी नीति है ?
ये कैसी परिपाटी है ?
ये कैसे संस्कार है ?
महानुभावों की -
जय हो ! जय जयकार हो !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय जय।