Saturday, December 24, 2011

... रात - दिन खिन्न हैं !

सर्द मौसम है तो रहता रहे
हमें तो पांव से गर्मी, जमीं से मिल रही है !
...
किसी के नर्म आदाब ने, हमें अपना बना लिया
उफ़ ! अब करें तो क्या करें !!
...
पहले सुना सुना कर प्रसन्न थे, अब सुन सुन कर सन्न हैं
नेता - अफसर लोकपाल के नाम से, रात - दिन खिन्न हैं !
...
ये कैसी आग है जो सीने में सुलगी हुई है
न जला के राख करती है, न बुझती ही है यारा !
...
धक्का-मुक्की, खींचा-तानी, पटका-पटकी
खाते रहो, देते रहो, लड़ते रहो, बढ़ते रहो !!

3 comments:

Dr.J.P.Tiwari said...

पहले सुना सुना कर प्रसन्न थे, अब सुन सुन कर सन्न हैं
नेता - अफसर लोकपाल के नाम से, रात - दिन खिन्न हैं !

Sahmat.

प्रवीण पाण्डेय said...

यही बचा है,
गदर मचा है।

***Punam*** said...

दो-दो पंक्तियाँ....लेकिन अर्थपूर्ण...