सर्द मौसम है तो रहता रहे
हमें तो पांव से गर्मी, जमीं से मिल रही है !
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किसी के नर्म आदाब ने, हमें अपना बना लिया
उफ़ ! अब करें तो क्या करें !!
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पहले सुना सुना कर प्रसन्न थे, अब सुन सुन कर सन्न हैं
नेता - अफसर लोकपाल के नाम से, रात - दिन खिन्न हैं !
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ये कैसी आग है जो सीने में सुलगी हुई है
न जला के राख करती है, न बुझती ही है यारा !
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धक्का-मुक्की, खींचा-तानी, पटका-पटकी
खाते रहो, देते रहो, लड़ते रहो, बढ़ते रहो !!
3 comments:
पहले सुना सुना कर प्रसन्न थे, अब सुन सुन कर सन्न हैं
नेता - अफसर लोकपाल के नाम से, रात - दिन खिन्न हैं !
Sahmat.
यही बचा है,
गदर मचा है।
दो-दो पंक्तियाँ....लेकिन अर्थपूर्ण...
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