ये कैसी दुनिया है 'उदय'
जहां डूबते सूरज -
खुद ही सुनहरे हो रहे हैं !
ऊगते सूरज -
और चिलचिलाती धूप से
मूँद के आँख -
डर के किनारे हो रहे हैं !
आग, ताप, तेज, वेग
और ज्वलनशीलता
डूबता सूरज कहाँ से दे हमें !
जो दे सके है, उसी से
पीठ कर -
ओट में खड़े ये हो रहे हैं !!
1 comment:
जो उगा है, उसे अस्त होना है।
Post a Comment