Saturday, November 12, 2011

साहित्य की दुनिया ...

सुनते हैं, साहित्यिक लोग
जीते जी -
उतने बड़े नहीं होते हैं
जितने बड़े -
मरने के बाद
खुद-ब-खुद हो जाते हैं !

मरने के बाद -
कोई कैसे बड़ा हो जाता है
यह सवाल मेरे जेहन में -
कूद रहा है
हिलोरें मार रहा है
गोते लगा रहा है
हुत-तू-तू कर रहा है !

काश ! मैं समझ पाता, जान पाता
कि -
मरने के बाद
ऐंसा क्या हो जाता है
कि -
साहित्यकार
खुद-ब-खुद बड़ा हो जाता है !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सही अवमूल्यन बिना भय के होता है।