कब तक दिलासा दूं
खुद को
कि -
कुछ लिख रहा हूँ
कब तक !
रोज वही चेहरे, वही लोग
होते हैं सामने मेरे
खामोश रहकर भी कुछ न कुछ -
कहते हैं मुझसे, पूंछते हैं मुझसे
कि -
आज नया क्या लिख रहे हो ?
ऐंसे कब तक चलेगा
कब तक चलते रहेगा
कब तक यूं ही -
कुछ छोटा-मोटा लिखते रहूँगा
कलम को -
पकड़ कर, यूं ही बैठे रहूँगा !
जी चाहता है, मेरा
कि -
कुछ ऐंसा लिखूं -
जैसा पहले कभी लिखा नहीं गया !
जैसा पहले कभी सोचा नहीं गया !
जैसा पहले कभी पढ़ा नहीं गया !
सच ! हाँ
कुछ ऐंसा ही लिखने का -
सोचता हूँ
कुछ ऐंसा ही लिखने की ओर -
बढ़ना चाहता हूँ
कलम मेरी
उस ओर ही है, जिस ओर ...
पहले कभी, कोई पहुंचा नहीं है !!
3 comments:
लिखो वही जो लिखा सभी ने, किन्तु सरलतम।
मौलिकता ही पहचान हो...
केवल अपने ढंग से कह देने पर ही बात नयी हो जाती है!
उस ओर ही है, जिस ओर ...
पहले कभी, कोई पहुंचा नहीं है !! bhaut khub.. happy diwali...
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