बहुत हुए, जग में अंधियारे, कब तक इसको-उसको देखें
चलो बनें हम खुद ही दीपक, दीपक बन के जलना सीखें !
...
उधर कच्ची, तो इधर पक्की मुहब्बत है
फर्क है तो, सोलह और छब्बीस का है !!
...
फेसबुकिया दोस्ती को सलाम है 'उदय'
वो भले न हों, पर हम तो कायल हुए हैं !
...
आज चाँद भी आसमां से दो घड़ी को इठलाएगा
तेरी खूबसूरती को देख, मंद मंद मुस्कुराएगा !!
...
सच ! आदत सी पड़ गई है, जी हुजूरी की 'उदय'
लोग, दर-ओ-दीवार को भी, ठोक देते हैं सलाम !
...
लगता है दोस्त मेरे, मरने की दुआ कर रहे हैं
तब ही तो बात बात पे, मेरी कसम खा रहे हैं !
...
कुसूर अपना था जो दिल दे बैठे थे
उन्होंने माँगा कब था !!
...
एक अर्से से, जिसे हम मुहब्बत माने बैठे थे
आज तजुर्वा हो गया, मुहब्बत क्या बला है !
...
किसी न किसी का तो भ्रम टूटना ही था
चलो अपना सही, समय पर टूट गया !!
...
जी चाहे है क्यूं न पुरुस्कारों की दुकां खोली जाए
सच ! दुनिया है बहुत छोटी, खरीददार बहुत हैं !!
3 comments:
सच ! दुनिया है बहुत छोटी, खरीददार बहुत हैं !!
.... शानदार प्रस्तुति
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
जी चाहे है क्यूं न पुरुस्कारों की दुकां खोली जाए
सच ! दुनिया है बहुत छोटी, खरीददार बहुत हैं !!
सटीक रचना ...आभार
Post a Comment