मुहब्बत का नशा, बहुत भयानक हुआ है
परसों से चढ़ा है, अभी तक उतरा नहीं है !
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सच ! कुछ मीठा, तो कुछ तीखा हो जाए
चलो, आज मुहब्बत को आजमाया जाए !
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'खुदा' जानता है, हम चाहते हैं उसको
अब तुम, इसमें हिसाब-किताब की बातें न करो !
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हमें ही मोहब्बत हुई थी, इसमें उसका क्या कुसूर
सच ! वो तो सिर्फ, देखते रही थी हमको !!
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पता नहीं, आज वो क्यूं खामोश है 'उदय'
कल तक तो वो, बहुत बातें करती रही थी !
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क्या खूब चढ़ा है, मुहब्बत का नशा हम पर
जिधर देखो उधर वो ही वो नजर आ रहे हैं !
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कुछ घंटे पहले ही तो, वो हमसे मिले थे
जाते जाते, मुझे अपना बना गए !!
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मैं याद कर के पाठ, वहां नहीं जाऊंगा
जो मन में आयेगा, वही बोल आऊँगा !
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तुम कहते रहो, हम सुन रहे हैं
लवों के बोल, मीठे लग रहे हैं !
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अब रंज दिलों में रख के क्या मिलना है 'उदय'
हम तो कब के, शहर उनका छोड़ चले आए हैं !
1 comment:
बहुत खूब ..मीठा टीका हो जाये ..बढ़िया अशआर लिखे हैं
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