मेरी प्रार्थना सुनकर
तुम, चुप-चाप, चले आओ
मुझे, तुम्हारा इंतज़ार है !
तुम, चुप-चाप, चले आओ
मुझे, तुम्हारा इंतज़ार है !
इस ऊंची हवेली के
पीछे बने, बेजान कमरे में !
मैं, ज़िंदा हूँ अभी
शायद, ज़िंदा रहूँगा, मरुंगा नहीं
तुम्हारे आने तक !
पर तुम, देर न करो, आने में
जल्दी, जल्दी, और जल्दी आ जाओ
मुझे
अपने सांथ ले जाकर
किसी शांत, एकांत कब्रिस्तान में
दफ्न कर दो, मार कर, या जीते जी !
क्यों, क्योंकि
अब मेरा दम घुटने लगा है
मेरी ही बनाई हुई, बनवाई हुई
इस आलीशान हवेली के
पीछे बने, इस बेजान कमरे में !
शायद अभी भी मेरे बेटे-बहु
जश्न मना रहे होंगे, अकेले अकेले
मुझे -
इस बेजान कमरे में अकेला छोड़कर !!
4 comments:
समय की बलिहारी है ..
...खूबसूरत अंदाज.... सुन्दर प्रस्तुति , बधाई
भयावह सच।
कडवी सच्चाई।
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