गपशपें करना भी 'उदय' जुर्म था
बस बैठ के बातें करीं दो-चार हैं !
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फूहड़ता लुटा रहे हैं, कामेडी के नाम पर
दरिन्दगी परोसते हैं, न्यूज के नाम पर !
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अब भला रखते भी क्या, हम उनसे मोहब्बत
जो खिड़की पे भी, कभी दिखते नहीं हमको !
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हो तो गया गुनाह, तुझे सजदे में मांग कर
रखना पडेगा अब, तुझको संभाल कर !
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तुझे इंसा बना कर, मुझसे हो गई गल्ती
तू जंगली था, तब ही अच्छा लगे था !
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अब इस तरह, मुंह फेर के जाना नहीं अच्छा
मोहब्बत में, तकरारें तो होते ही रहती हैं !
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कोई कहे धर्मावलम्बियों, तो कोई कहे पाखंडियों का
उफ़ ! हमें तो लगे है, भ्रष्टतम भ्रष्टाचारियों का देश है !
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'खुदा' जाने कौन किसके कंट्रोल में है
हमें तो कोई, कंट्रोल में नहीं लगता !
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सच ! कभी देखी नहीं हमने, ऐसी काठ की पुतली
जो बे-जान होकर भी, गजब करतब दिखाती है !!
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