घनी रात में, चलो आ गए
सुन पुकार तेरी
हम
घने, घनघोर, बादलों की तरह !
बरसते रहे
रुक रुक कर, थम थम कर
रात भर ...
करते रहे, तुम्हें, तर-बतर
रिमझिम-रिमझिम
बारिश की तरह !
ठहरे, फिर उमड़े
कभी, बादलों सी
गड़-गड़ाहट की तरह
कभी
कौंधती, बिजली की तरह !
तुम्हें, भिगाते भी रहे
खुद, भीगते भी रहे
रात भर ...
होते रहे, तर-बतर
रिमझिम - रिमझिम
बारिश की तरह !!
रिमझिम - रिमझिम
बारिश की तरह !!
5 comments:
सुंदर अभिव्यक्ति !!
भावभीनी प्रस्तुति।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
अच्छी है, लेकिन मुझे आपकी समसामयिक रचनायें और अधिक अच्छी लगती हैं..
अच्छी रचना...
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