देख के, संभल के, कदम बढाए जाएं
नशा बुरा है, चख के छोड़ दिया जाए !
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सच ! नए दौर में, नई परम्पराएं, अच्छी हैं
फूलों में खुशबू न सही, सजावटें अच्छी हैं !
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सच ! तेरे मेरे दरमियां, फासला उतना ही रहा
जितना तेरे मेरे बीच, फासला ख्यालों में रहा !
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सच ! लोग हैं, जो मुफलिसी में भी, चैन से जी रहे हैं
बहुत ऐसे भी हैं जो करोड़ों रख के भी जेल जा रहे हैं !
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सच ! अब वो पीड़ा नहीं होगी, जो जीते-जी रही होगी
साहित्यिक मठों में, जिन्दे नहीं, पूजे जाते हैं मुर्दे !!
2 comments:
bahut badhiya rachna
आपकी कविताओं की तरह ही शानदार..
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