एक दिन
मैं भी, घंटों बैठकर
एकांत में, सोचता रहा
चमचागिरी
और चापलूसी में
आखिर, बुराई क्या है
लोग क्यों
बुरी नजर से, देखते हैं
किसी चमचे
या चापलूस को !
फिर सोचा, और सोचते रहा
बुराई, किसमें नहीं होती
होती है, सबमें होती है
मुझे तो, कोई भी
बुराई से, अछूता नहीं दिखता
लोग, अच्छे-अच्छों की
करते-फिरते हैं, बुराई पे बुराई !
पर मैंने, देखा है
हरदम, हरपल
मौज-मजे में, शान-शौकत में
चमचों, और चापलूसों को
ये तो कुछ भी नहीं
मैंने तो
चमचों के चमचों को भी
देखा है
एक गाल में रसगुल्ला
तो दूजे गाल में, पान चबाते हुए !!
9 comments:
छोटी किन्तु प्रभावशाली कविता..
कितना गहन लिखा है…………कहने को शब्द कम पड गये हैं
वाह भई वाह।
चमचागिरी
और चापलूसी वाह जी वाह बहुत सुंदर बाते कह दी आप ने इस कविता मे, धन्यवाद
चमचागिरी और चापलूसी वाह जी वाह! धन्यवाद
बहुत बढिया बात बताओ तो भला क्यों बुरी नजर से देखते है।
मजेदार- एक गाल में रसगुल्ला दूसरे मे पान अच्छा हुआ तीसरा गाल न हुआ
बहुत ही प्रभावशाली कविता है, चमचाओं पर ।आज तो जीवन के हर क्षेत्र में चमचागिरी की धूम है ।राजनीति तो चमचागिरी के बिना सम्भव ही नहीं है ।वाह- वाह ।
नाइस कविता
गागर में सागर भर दिया
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